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जैसलमेर के जैन-चीर
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मेहता सालिमसिंह महाराज मूलसिंह तीनमाह चारदिन तक कारागार की यन्त्रणा
सहन फरने के पश्चात् एक वीर रमणी की सहायता से मुक्त होकर पुनः सिंहासनारुढ हुये । महाराज मूलसिंह के सिंहासनारुढ होते ही युवराज रायसिंह और उसके साथी सामन्त निर्वासित कर दिये गये। __ पूर्व परम्परा के अनुसार महाराज मूलसिंह ने अपने पुराने मंत्री स्वरूपसिंह के मारे जाने पर उसके सुयोग्य पुत्र सालिमसिंह को अपने मंत्री पद से विभूषित किया । स्वरूपसिंह की शोक पूर्ण मृत्यु के समय यद्यपि सालिमसिंह केवल ११ वर्ष का था, फिर भी उस अल्पवयस्क के हृदय में प्रतिहिंसा की अग्नि प्रज्वलित हो चुकी थी। वह अपने पिता के निर्दयी घातकों से बदला लेने के लिये समय की प्रतीक्षा करने लगा। एकवार जव सालिमसिंहराजा की आज्ञा से जोधपर नरेश के राज्यासीन होने पर अभिनन्दन देख कर वापिस लौटरहा था, तब मार्ग में स्वरूपसिंह के शत्रुओं ने इसे भी धोखेसे वध करने के लिये पकड़ लिया, किन्तुसालिमसिंह अत्यन्त नीतिनिपुण और मितभाषी था। उसने अपनी वाक्यपटुता में शोणित-लोलुप सामन्तों को फँसा लिया और अत्यन्त चतुरता से अपने जीवन की रक्षा की । अन्त में दया के वशीभूत