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मंडन का चीर वंश
३०३ स्वयं ही कादंबरी की फया संप से कही है, परंतु यदि आपकी श्राशा है, तो मैं इसकी कथा आपसे संक्षेपमें निवेदन करूँगा"यह फद फर इसने "मंडन-कादंबरी-दर्पण" नामक अनाष्टुप श्लोकों में फादंबरी का संक्षेप घनाया।
एक बार पौर्णिमासी के दिन सायंकाल के समय मंडन पहाड़ों के आंगन में बैठा हुआ था। सरस साहित्य की गोष्ठी हो रही थी। इतने में चंद्रोदय हुआ। चंद्रमा कवियों की परम प्रिय वस्तुओं में से एक है। कदाचिन ही ऐसा कोई कान्य होगा, जिसमें चन्द्रमा सेक्षा की दृष्टि से देखा गया हो । चंद्रमा की अमृतमयी रश्मियों ने मंडन के एडय फो विद्वत कर दिया। उसने कई लोक चंद्रमाके वर्णन के बनाये। ऐसा मालूम होता है कि चंद्रमा की रमणीयता दखने में उसे सोने का भी स्मरण न रहा हो। चंद्रमा के उदय से यस्त तक फी भिन्न भिन्न प्रशाओं का उसने अनेक ललित पद्यों में वर्णन किया । धीरे धीरे चंद्रमा के अस्त होने का समय आया । मंडन का चित्त अत्यंत खिन्न हुश्रा। जिसके लिए वह सारी रात पेठा रहा था, उसे इस प्रकार अस्त होते देख वह कहने लगा।"हाय जिस मार्ग पर चलने से पहले सूर्य का अधःपात हो चका था, दुर्दैव-वश चंद्रमा भी उसी मार्ग पर चला और उसका भी प्रा में अधःपात हुश्रा । जब पतन होने को होता है तो जानो हुये का भी मान नष्ट हो जाता है। चंद्रमा को पहले पूर्व दिशा प्राप्त हुई थी, पर उसे छोड़ वह पश्चिम दिशा के पास गया । पहले तो उसने राग (अनुराग और रफता) प्रकाशित कर उसे अपनाया पर वेश्या की