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आबू पर्वत पर के प्रसिद्ध जैनमन्दिर ३१५ "उत्तङ्कषिरे भीमे वशिलो नन्दिवर्द्धनम् । किला, स्थापयामास भुजावुदसंज्ञयो ।" जिनप्रभसूरि पिरचित ' अर्बुदकस' में भी इस विषयका उल्लेख है:
"नन्दिवर्द्धन इत्यासीत्प्राकशैलोऽयं हिमाद्रिजः । कलिनादनागाधिरानात्वबुद इत्यभूत ॥२५॥ अर्थात्-अर्बुद नाम के सर्प द्वारा लाया जाने के कारण यही शिवरअन्तमें बाबू (अबुद) नाम से प्रसिद्ध हुआ। प्राचीन लेखों में लिखा है कि, इसी पर्वत पर वशिष्ठ ने अग्निकुण्ड से परमार, पडिहार, सोलङ्की और चाहमान (चौहान) नामके चार वीरों को उत्पन्न किया था। इन चारों ने अपने नाम से चारवंश प्रचलित किये। __ यद्यपि इस प्रकार की उत्पत्ति पर ऐतिहासिकदृष्टि से विश्वास नहीं किया जा सकता और इस लेख के विरुद्ध भी कई : लेख मिल गये हैं जैसे अजमेर के ढाई-दिन के झोंपडे में एक शिला मिली है, इसमें चाहमान की उत्पत्ति सूर्यवंश में होनी लिखी हैतथापि इस समय इस विषय पर विशेष वादविवाद न करके हम अपने प्रस्तुत विषय को ही लिखते हैं। - यह पर्वत प्राचीन समय से ही शैव, शाक्त, वैष्णव, और जैनों द्वारा पूज्य दृष्टि से देखा जाता है । तथा वहाँ पर इन मतों के मन्दिरादिक होने से प्रतिवर्ष बहुत से यात्री भी दर्शनार्थ जाया