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राजपूताने के जैन-वीर
विक्रम संवत् १५०६ ( ई० स०१४४९) के राणा कुम्भा के लेख
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से पाया जाता है कि, उस समय घोड़ों और बैलों द्वारा वहाँ से व्यापार आदि किया जाता था; क्योंकि वहाँ पहुँचने के लिए केवल पहाड़ी मार्ग ही था । परन्तु इस समय यह पर्वत राजपूताने के एजेण्ट गवर्नर जनरल का निवासस्थान और सेनिटोरियम ( स्वास्थ्यप्रद स्थान ) वनगया है। तथा राजपूताना मालवा रेलवे के वरोड ( खराडी) स्टेशन से यहाँ तक १८ माइल लम्बी . सड़क भी बनादी गई है।
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वहीं पर देलवाडा नामक एकं स्थान है। यह स्थान श्रवदादेवी (अधरदेवी) से क़रीब एक माहल ईशानकोण में हैं। यह स्थान देवालयों के लिये विशेष प्रसिद्ध है । यद्यपि यहाँ पर अनेक मन्दिर हैं । तथापि यहाँ के श्रदनाथ और नेमिनाथ के जैनमन्दिर की कारीगरी संसार में अनुपम है । ये दोनों मन्दिर सङ्गमरमर के बने हुये हैं। इन दोनों मन्दिरों में भी पोवाड़ महाजन का बनवाया हुआ विमलवसही नामक आदिनाथ का मन्दिर विशेषतर सुन्दर और पुराना है । यह मन्दिर वि० सं० १०८८ ( ई० स० १०३१) में बना था । यह बात उसमें से मिली हुई वि० सं० १३७८, ( ई० स० १३२२ ) की प्रशस्ति से प्रकट होती है। जिनप्रभसरि को तीर्थकल्प नामक पुस्तक से भी इस मन्दिर का रचनाकाल वि० सं० १०८८ ही प्रकट होता है।
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खरतरगच्छ की पट्टावली में लिखा है :
पोरवाड वंशोत्पन्न मंत्री विमल ने तेरह सुलतानों की छतरियों