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राजपूताने के जैनवीर
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इन्हीं में से किसी एक का पुत्र हो ।
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मंडन यद्यपि जैन था और वीतराग का परम उपासक था,
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परन्तु उसे वैदिकधर्म से कोई द्वेप नहीं था। उसने अलंकार मडन में अनेक ऐसे पद्म उदाहरण में दिए हैं, जिनका संबंध वैदिकधर्म से है । जैसे—
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श्रीकृष्णास्य पदद्वंद्वमघमाय न रोचते
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अल० म० परि० ५ श्लोक ३३९
अर्थात् जो नीच होते हैं उन्हें श्रीकृष्ण के चरण युगल अच्छे
नहीं लगते. ! .
किं दुःखहारि हरपादपयोजसेवा यद्दर्शनेन न पुनर्मनुकत्वनेवि
तत्रैव ९७
अर्थात् दुख को हरण करने वाला कौन है ? महादेव के चरण कमलों की सेवा; जिनके दर्शन से फिर मनुष्यत्व प्राप्त नहीं होता ( मोच हो जाता है) । .
मंडन के जन्म तथा मृत्यु का ठीक समय यद्यपि मालूम नहीं होता तथापि मंडन ने अंगना मंडपदुर्ग (मांडू) में वहाँ के नरपति आलमशाह का मन्त्री होना प्रकाशित किया है । यदि उपरोक्त अनुमान के अनुसार आलमशाह हुशंगंगोरी ही का नाम है, तो कहना होगा कि मंडन ईसा की १५वीं शताब्दी के प्रारंभ में हुआ था, क्योंकि हुशंग का राज्यकाल ई० स० १४०५ से ई० स०१४३२.
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