Book Title: Rajputane ke Jain Veer
Author(s): Ayodhyaprasad Goyaliya
Publisher: Hindi Vidyamandir Dehli

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Page 326
________________ ૨૦૮ राजपूताने के जैन-वीर . मंडन ने चंडन को सारस्वतमंडन का अनुज और काव्य-: 'मंडन के भ्रातृत्व (भाईपन) से सुशोभित कहा है और शृंगार मंडन के अंत में अपने को "सारस्वत-मंडन - कवि " कहां है। इससे सिद्ध है कि सारस्वतमंडन नामक एक और ग्रंथ मंडन ने बनाया है ।' आखूफ्रेट साहब ने अपने "केटलोगस केटलोगरम" नामक पस्तक में मंडन मन्त्री और मंडन कवि इन दो भिन्नर व्यक्तियों का वर्णन लिखा है। अंडन मंत्री के लिए लिखा है कि "ईस्वी सन् १४५६ में "कामसमूह" नामक ग्रंथ के बनाने वाले अनंत का पिता था ।" और मंडन कवि के लिए लिखा है कि "यह उपसर्ग मंडन, सारस्वत मंडन और कविकल्पद्रुम स्कंध नामक ग्रंथों का कर्ता था। जैसा कि ऊपर बतलाया जा चुका है, सारस्वतमंडन .: आदि ग्रन्थ हंमारे चरित्रनायक बाहड़ के पुत्र मन्त्री मंडन ही के बनाए हुए हैं । अतः सिद्ध है कि फ्रेट साहिव जिसे मंडन कवि कहते हैं वह बाहड़ का पुत्र मन्त्री मंडन ही है । कामसमूहके कर्ता अनंत का पिता मंत्रिमंडन इस मन्त्रिमंडन से बिलकुल 1 ही भिन्न है। दोनों के नामों की समानता दोनों का मन्त्री होना और समय भी प्रायः समान ही होना यद्यपि इस बात का भ्रम उत्पन्न करता है कि अनंत मांडू के मंत्रिमंडन ही का पुत्र हो, परन्तु अनंतकृत कामसमूह और भगवती सूत्र के अंत की प्रशस्ति 'देखने पर यह भ्रम नहीं रहता ।' : • ' ' पाठकों को विदित है कि मांडू का मंत्रि मंडन सोनगरा गोत्र का क्षत्रिय था परंतु अनंत क्षत्रिय नहीं था, वितु अहमदाबाद का

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