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मंडन का वीर वंश
३०९ रहने वाला बढ़नगरा नागर ब्राह्मण था यथा
नागरज्ञाविजातेन मंत्रिमंडनसनना अनंतेन महाकाव्ये सतीवृत्तं प्रकाशितम् ।
कामसमूह सतीवृत्त प्रकरण लो० २९ अहमदनिर्मितनगरे विहितावसतिश्च वृद्धनागरिक: मंडनसनुरनंतो रचयति सेवाविधिनार्याः
कामसमूह-त्री-सेवा-विधी प्रकरण लो० १९ भगवतीसूत्र के अंत में जो मंडन के पुत्रों के नाम दिए हैं उनमें अनंत नाम नहीं है।
"केटलोगस केटलोगरम" से मालूम होता है कि ऊपर लिखित ग्रंथों के सिवाय मंडन ने कविकल्पद्रुम स्कंध नामक एक और भी अन्य बनाया था । इस प्रकार मंडन के बनाये हुए कुल १० प्रथ .' अब तक विदित हुए हैं, जो नीचे लिखे अनुसार हैं।
(१) कादंबरीदर्पण (२) चंपूमंडन (३) चंद्रविजयप्रबंध (8) अलंकारमंडन (५) काव्यमंडन (६) अंगारमंडन (७) संगीतमंडन