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मंडन का वीर वंश पर पहले जिनवर्द्धनसूरि को स्थापित किया था, परंतु उनके विषय. में यह शंका होने पर कि उन्होंने ब्रह्मचर्य भंग किया है, उनके स्थान पर जिनभद्रसूरि को स्थापित किया गया था। महेश्वर ने अपने काव्यमनोहर में जिनभद्रसूरि की वंशपरंपरा इस प्रकार दी है१जिनवल्लभ, २ जिनदत्त, ३ सुपर्वसरि, ४ जिनचंद्रसरि, ५ जिनसरि, ६ जिनपद्मसूरि,७ जिनलब्धिसूरि, ८ जिनराजसूरि. ९ जिनभद्रसरि।
पाटण के भांडार में भगवतीसूत्र की एक प्रति है । उसके अंत की प्रशस्ति से विदित होता है कि जिनभद्रसरि के उपदेशसे मंडन ने एक बृहत् सिद्धांत ग्रंथों का पुस्तकालय "सिद्धांत कोश" नामक तय्यार करवाया था। यह भगवतीसूत्र भी उसी में की एक पुस्तक
मंडन ने अपने ग्रन्थों के अंन की प्रशस्ति में अथवा महेश्वर ने अपने काव्यमनोहर में मंडन के पुत्रों के विषय में कुछ नहीं लिखा, परन्तु उपरोक्त भगवतीसूत्र के अंत की प्रशस्ति से विदित होता है कि मंडन के पूजा, जीजा, संग्राम और श्रीमाल नामक ४ पुत्र थे। मंडन के अतिरिक्त सं० धनराज, सं० खीमराज और सं० उदयराज का भी नाम इसमें लिखा है। खीमराज चाहड़ का दूसरा पत्र खेमराज है और धनराज देहड़ का पुत्र धन्यराज । उदयराज कौन था यह ज्ञात नहीं होता। महेश्वर ने झमण के छः पुत्रों में से तीनों के पत्रों का वर्णन किया है, परन्तु पछा, आल्ह और पाह की संतति के विषय में कुछ नहीं लिखा। संभव है कि उदयराज