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मंडन का वीरवंश
३०१ और ऊँचे दरवाजे वाला मंडप बनवाया और उसके लिए वितान (चंदवा) भी बनवाया। १४. पाह:- झमण का सबसे छोटा पुत्र पाहू था, इसने अपने गुरु जिनभद्रसूरि के साथ अर्बुद (श्रावू ) और जीरापल्ली (जीरावला) की यात्रा की थी।
ये मंमड़ के छहो पत्र आलमशाह (हुशंगगोरी) के सचिव थे। ये बड़े समृद्धिशाली और यशस्वी थे। मंडन ने अपने काव्यमंडन में लिखा है कि "कोलाभक्ष राजा ने जिन लोगों को कैद कर लियाथा, उन्हें इन धर्मात्मा मभण पुत्रों ने छुड़ाया। यह कोलाभक्ष कौन था विदित नहीं होता, शायद कोलाभक्ष से मतलव मुसलमान से हो । संस्कृत में "कोल" सुकर को कहते हैं और अभक्ष" का अर्थ "न खानेवाला" ऐसा होता है। अतः कोलामक्ष का अर्थ सूअर न खानेवाला अर्थात् मुसलमान यह हो सकता है। यदि यह अनुमान ठीक है तो "कोलाभक्षनृप" का अर्थ आलमशाह (हुशंग) ही है । ये लोग हुसंगगोरी के मंत्री थे अतः उसके कैदियों को उस से अर्ज कर छुड़ाया हो यह संभव भी है। १५. मंडन:
ऊपर बतलाया जा चुका है कि मंडन, मगरण के दूसरे पुत्र वाहड़ का छोटा लड़का था। यह व्याकरण अलंकार संगीत तथा अन्य शास्त्रों का बड़ा विद्वान् था। विद्वानों पर इसकी बहुत प्रीति थी। इसके यहाँ पंडितों की सभाहोतीथी, जिसमें उत्तमकविप्राकृत