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राजपूताने के जैन-धीर पृथ्वीराजरासो में सामेश्वर के पिता का नाम आनन्दमेव लिखा है, इससे अनुमान होता है कि आनंद या आनंदमेव अर्णोराज ही के नामांतर हैं । पृथ्वीराज रासो में यह भी लिखा है कि आनंदमेव (अर्णोराज) ने सोमेश्वर को राज्य दिया, सोमेश्वर ने गुजरात
और मालवे पर आक्रमण कर उन्हें अपने आधीन किया। : मालूम होता है कि अभयद ने अपनी युवावस्था में ही जब कि उसका पिता विद्यमान था, आनंद के मंत्री का पद प्राप्त कर लिया था, और आनंद के बाद सोमेश्वर के सिंहासनारूढ़ होने पर भी यह उस पद पर बना रहा, तथा सोमेश्वरने गजरात पर जो
आक्रमणं किया, उसमें या तो यह भी साथ था, या सोमेश्वर ने स्वयं न जाकर इसे ही गुजरात जीतने को भेजा हो । इसके बाद सोमेश्वर ने इसके पिता अभयद को जो उस समय भी वर्तमान था मंत्री बनाया हो।' : ... . . . . : ३. पांवड:. अभयट का पुत्र आँवड़ हुआ। इसने स्वर्णगिरि (जालौर के किले) पर विद्महेश को स्थापित किया । यहाँ पर विग्रहेश से शायद सोमेश्वर का बड़ा भाई विप्रहराज चौथा, जिसका उपनाम वीसलदेव था, निर्दिष्ट किया गया हो, अर्थात् आँवड़ ने जालौर का किला, विग्रहराज के आधीन करायां हो।"ईश" शब्द राजाओं के नामके अन्त में भी आता है, जैसे अमरसिंह के लिए.अमरेश,
और शिव के नामों के अंत में भी आता है, जैसे समाधीश, अ। चलेश आदि। यहाँ यह स्पष्ट:प्रतीत नहीं होता हैकि विग्रहेश से