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मंडन का वीर वंश
२९७ एक एक रुपए से ही सम्पत्तिशाली बन जाता था। __मांडू में उस समय आलमशाह राज्य करता था। इसने पूर्व
और दक्षिण के राजाओं तथा गुजरात के नरेशों को हराया था। झंगण को वृद्धिमत्ता और राज्यप्रबंध-कुशलता देख आलमशाह ने इसको अपना मंत्री बनाया। फरिश्ता ने मालवा के बादशाहों की जो नामावली दी है, उसमें पालमशाह नामक किसी वादशाह फा नाम नहीं है। संभव है कि पालमशाह सेअभिप्राय दिलावरखाँ के लड़के हुसंगतारी से हो, जिसने मालवेका स्वतंत्र राज्य स्थापित किया. मांड का किला वनवाया और धार से उठाकर मांडू को राजधानी बनाया । मालवे के सिंहासन पर अधिकार करने के पर्व इसका नाम अल्पखौं था । संभव है कि अल्पखों को पालमखाँ समम फर उसका संस्कृत रूप पंडितोंनेालमशाह कर दिया हो।
मालमशाह के समय का विसं० १४८१ का एक जैन-शिलालेख ललितपुर प्रांत के देवगढ़ के पास मिला है। उसमें किसी मंदिर के धनवाने का समय लिखने के प्रकरण में लिखा है कि, "राजा विक्रमादित्य के गतान्द १४८१ और शालिवाहन फे शाक १३४६ वैशाखशुछ १५ गुरुवार स्वाति नक्षत्र और सिंह लग्न के उदय के समय अपने भुजबल के प्रतापरूपी अग्नि की ज्वाला से गजाधीश (दिल्ली के बादशाह) को व्याकुल फर देनेवाला गोरीपंशी मालवे का राजा श्री शाह आलम्मक विजय के वास्ते जव मंडलपर (माई) से निकला, उस समय" और अंत में भी साहि पालम्मा का नाम लिखा है और बाद में लिखा है कि "उस समय