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राजपूताने के. जैन वीर
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फीरोज़ ई० स० १२९० ( वि० सं० १३४० ) में सिंहासनारूद हुआ था । यह ५० वर्ष का अंतर भी पितापुत्र में असंभव नहीं है। .. राजा (मोइनुद्दीन) की सेना ने जब "कच्छपतुच्छ" नामक देशको घेर लिया, तो लोगों को दुःख से चिल्लाते हुये सुनकर सहगणपाल को दया आई। उसने अपने प्रयत्न से उस देश को छुड़ा दिया । इसने यवनाधिपु (मुसलमान बादशाह) को एक सौ एक तार्क्ष्य दिये और बादशाह ने भी खुश होकर उसे सात मुरत्तव बख्शे। ५. नैणा:--
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सहणपाल का पुत्र नैणा हुआ। जिसे सुरनाय (सुलतान ) जलालुद्दीन ने सब मुद्राएँ अर्पण कर दो थीं । अर्थात् राज्य का सम्पूर्ण कारवार इसे सौंप रक्खा था। यह सुलतान जलालुद्दीन फीरोज़ खिलजी था, जो मौइजीन कैकोबाद के अनंतर सन् १२९० ईस्वी में तख्तनशीन हुआ था, और छः वर्ष राज्य करने के उपरान्त सन् १२९६ ईस्वी में मकान के नीचे दबकर मर गया था। इस ने जिनचंद्रसूरि आदि गुरुओं के साथ, सिद्धाचल और रैवतक पर्वत की यात्रा की थी। इस वंश में सत्र से प्रथम जैनमत इसी ने स्वीकार किया हो, ऐसा प्रतीत होता है । ६. दुसाजु:--
नैया का पुत्र दुसाज हुआ। यह चंड राउल के सुविस्तृत राज्य का मुख्य प्रधान था । तुग़लकशाह ने इसे आदर पूर्वक बुलाकर " मेरुतमान” देश दिया था । यह तुरालशाह गयासुद्दीन तुरा