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२७६ राजपूताने के जैन-चौर श्रावक प्रतिक्रमण सूत्र चूणिका, ५ मेहता नैणसी की ख्यातं , ६ कितने ही जैनशिला-लेख।
सेठ लोलाक ने "उन्नत शिखर पुराण" नामक दिगम्बर जैन पुस्तक पीजोल्याँ (मेवाड़) के पास एक चट्टान पर वि०सं० १२२६ में खुदवाई थी, सो अब तक सुरक्षित है। ...
प्राचीन जैनों ने वीरता,धीरता, कला-कौशल, शिल्पचातुर्पता, चित्रकारी, संगीत आदि के समान साहित्य के आध्यात्मिक नीति, ज्योतिष, व्याकरण, न्याय, काव्य, वैद्यक, इतिहास-प्रत्येक विषय के ग्रन्थों का निर्माण करके अपनी अलौकिक प्रतिमा का परिचय दिया है । ये ग्रन्थ-रत्न भारत के भिन्न-भिन्न जैन-भण्डारों में भरे पड़े हैं। राजपूतानान्तरगत जैसलमेर के भण्डार. में भी जैन-ग्रन्थों का अच्छा संग्रह किया गया है। यहाँ अनेक प्रकार के संस्कृत, प्राकृत, मागधी, अपभ्रंश शौरसेनी, पाली, गुजराती, मारवाड़ी और हिन्दी भाषा के प्राचीन ग्रन्थ मौजूद हैं, कितने ही ऐसे अजैन ग्रन्थ यहाँ संग्रहीत हैं, जो अन्यत्र कहीं उपलब्ध नहीं होते । हजारों माइल दूर से यूरोपियन और भारतीय विद्वान् यहाँ आकर प्रन्थों का अवलोकन करते हैं और प्रशस्ति, ग्रन्थ, प्रन्थ
~~~mmmmm.incim..mor.. + मेहता नैणासी को स्वर्गीय मुंशी देवीप्रसादजी "राजपूताने का अब्बुलफल" कहा करते थे । ओझानी ने लिखा है कि "राडसाहव को नैणसी की ख्याति देखने का मौका मिला होता, तो आज, टाडराजस्थान किसी भार ही रूप में होता' मेहता नेणसी का और उनके अन्यों का परिचय पु० २०० में देखिये।