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साहित्य-भंडार
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नहीं, अपितु इनमें सामग्री बिखरी हुई
ये ग्रंथ केवल जैनों के ही लाभ के लिये भारतवर्ष के इतिहास की भी बहुत अधिक पड़ी है। पूज्य श्रोमाजी के इतिहास से सूचित होता है कि मेवाड़ के प्राचीन इतिहास की शोध एवं सत्यासत्य का निर्णय विशेष कर इन्हीं जैनप्रन्थों से हुआ है । मेवाड़ के रावल जैत्रसिंह, तेजसिंह, आदि के समयादि निर्णय में पूज्य पं० ओमाजी को मेवाड़ में उस समय के बने हुये "प्रोघनियुक्त" तथा "पाक्षिक सूत्र वृत्ति" आदि ग्रन्थों से सहायता मिली है। ये ग्रंथ इस समय गुजरात में खम्भात के मन्दिर में हैं। इनके अलावा पूज्य श्रोझाजी ने अपने इतिहास में निम्न जैन ग्रंथों से खोज सम्बन्धी सहायता मिलने का उल्लेख किया है :--
१ हम्मीर महा काव्य, २ हम्मीर मद-मर्दन, ३ तीर्थकल्प, ४
उनकी इस प्रवृत्ति का फल है, जो बीकानेर, जैसलमेर, नागोर, पाटन और खंभात आदि स्थानों में हस्तलिखित पुस्तकों के गाड़ियों बरते अब भी सुरक्षित पाये जाते हैं ।"
इतिहास तिमिरनाशक में लिखा है कि "एक अंग्रेज विद्वान ने एक बार जैनग्रन्थों की सूची बनाने का प्रयत्न किया तो उसकी संख्या लाखों और करोड़ों तक पहुँची ।"
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+ टॉड साहब लिखते हैं: "यदि ध्यान से जैनधर्म की पुस्तकों को बांधा जाय, जिनमें कि उन सब विद्या सम्बन्धी बातों का वर्णन है, जिनको प्राचीन समय के लोग जानते थे, तो हिन्दु-जाति के इतिहास की बहुतसी त्रुटियां पूर्ण हो सकती हैं । (टाड राजस्थान प्र० भा० भू० पृ०