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२७८ राजपूताने के जैन-वीर का उपासक न रह कर लक्ष्मी का उपासक बन गया है। और उलुकबाहन लक्ष्मीके उपासक,सरस्वती का अस्तित्व और प्रतिष्ठा देख नहीं सकते । यदि सत्य बात कहना अपराध न समझा जाया तो मैं कहूँगा कि जहाँ हमारे पूर्वजों ने संसार के प्रत्येक कार्य को सम्पादन करके अपने प्रकाण्ड पाण्डित्य का परिचय दिया है, वहाँ. हमारे जैसे कृतघ्नी-पुत्रों को जन्म देकर भारी मूर्खता का भी परिचय दिया है । नहीं तो क्या कारण है कि, जब संसार की सभी जातियाँ अपने पूर्वजों की कृतियों और कीर्तियों के उत्थान का भरसक प्रयत्न कर रही हैं, तब हम हाथ पर हाथ धरे निश्चिन्त बैठे हैं। हमारी इस अकर्मण्यता को लक्ष करके ही शायद स्वर्गीय "चकबस्त्र ने कहा था:
मिटेगा दीन भी और आवरू भी जायेगी। तुम्हारे नाम से दुनियां को शर्म आयेगी।
[२८ जनवरी सन् २३]