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बच्छावतों का उत्थान और पतन
तलवार हाथ में लेकर बाहर निकल पड़े । वे बड़ी वीरता से लड़े. और मर गये । उनके मरने के बाद उनके घर गिराकर धराशायी कर दिये गये । राजा ने बच्छावत कुल का सरूल नाश करने की बड़ी कोशिश की; परन्तु प्रकृति ने इसके प्रतिकूल हो किया । बच्छावत वंश की एक महिला इस क़ले आम में से बड़ी चालाकी से भाग निकली और अपने बाप के यहाँ किशनगढ़ : जा पहुँची । वहाँ पर उसके एक पुत्र उत्पन्न हुआ और इस प्रकार वीर बच्छावत वंश की रक्षा हुई ।
सूरा सो पहिचानिये लड़े श्रान के हे! | पुरज़ा पुरज़ा कट मरे तोऊ न छोड़े खेत ॥
-अज्ञात
[१ जनवरी ३३]
ऊपर जिन बीकानेर नरेश रायसिंह का जिक्र आया है उनके एक भाई अकबर बादशाह के यहाँ रहते थे । उनकी एक घटना को लेकर सन् २८ में एक छोटीसी कहानी लिखी थी, जो "वीरसन्देश” (आगरा) और "जैन प्रकाश" (बम्बई) में प्रकाशित थी । यद्यपि वह कहानी प्रस्तुत पुस्तक के विषय से कोई सम्बन्ध नहीं रखती है फिर भी प्रसंगवरा यहाँ दी जा रही है।
यह महिला उदयपुरके भामाशाह की पुत्री थी, और उस लड़ाई के अवसर पर वह पहले से ही उदयपुर गई हुई थी, और गर्भवती होने के कारण इसने वहीं पुत्र प्रसव किया, इससे आगे का उल्लेख "भामाशाह की पुत्री का घराना अथवा बच्छावत का अंतिम वंश" शीर्षक से मवाड़ के खण्ड में देखिये - गोयलीय । + जैन- हितेषी भाग १२ १ ३ से ।