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बच्छावनों का उत्थान और पतन २४७ कडूवा बैठा। इसका नाम तो अलबत्ता कड़वा था,परन्तु वास्तवमें यह परिणाम में अमृत के समान मीठा निकला। एक बार यह मेवाड़ देशस्थ चित्तोड़गढ़ देखने के लिये गया। उसका आगमन सुन कर चित्तौड़ के राणाजी ने उसका बहुत सम्मान किया।थोड़े दिनके वाद मॉडवगढ़ का वादशाह किसी कारण से फैज लेकर चित्तौड़गढ़ पर चढ़ आया । इससे सभी चिन्तित हुये, तव राणा ने कड़वा से कहा:-"पहिले भी तुम्हारे परखानों ने हमारे पूर्वजों के अनेक बड़े बड़े काम सुधारे हैं, इसलिये अपने पूर्वजों का अनुकरण कर,
आप भी हमारे इस काम को सुधारो।" यह सुनकर कडूवाजी ने वादशाह के पास जाकर अपनी बुद्धिमता से उसे समझा कर परस्पर में मेल करा दिया और बादशाह की सेना को वापिस लौटा दिया। इस बात से नगरवासी जन बहुत प्रसन्न हुये और राणाजी ने भी प्रसन्न होकर कडुवाजी को अपना प्रधान मंत्री बनाया । उक्त पद को पाकर कड़वाजी ने अपने सद्वर्ताव से वहाँ उत्तम यश प्राप्त किया।कुछ दिनों के बाद कडुवा राणाजी की आज्ञा लेकर अणहिलपत्तन में गये, वहाँ भी गुजरात के राजाने इनका बड़ा सम्मान किया तथा इन के गुणों से सन्तुष्ट होकर पाटन इन्हें सौप दिया, कडूवाजी ने अपने कर्तव्य को विचार कर सात क्षेत्रों में बहुत सा द्रव्य लगाया, गुजरात देश में जीव-हिंसा को बन्द करवा दिया, तथा विक्रम संवत् १४३२ के फाल्गुण बदी छट्ठ के दिन खरतरगच्छाधिपति जैनाचार्य श्रीजिनराजसूरिजी महाराज का नन्दी(पाट) महोत्सव सवालाख रुपये लगाकर किया, इसके सिवाय इन्होंने