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बच्छावतों का उत्थान और पतन २४५ लिया, जब इस बात की खबर बादशाह को पहुंची, तब उसने अपनी फौज को लड़ने के लिये मच्छेन्द्रगढ़ पर भेज दिया, राणा श्रीकरण वादशाह की उस फौजसे खूब ही लड़ा परन्तु आखिरकार वह अपना शूरवीरत्त्व दिखाकर उसी युद्ध में काम आया । ४. समघर:__ राणा के काम आजाने से इधर तो बादशाह की फौज ने मच्छेन्द्रगढ़ पर अपना कब्जा कर लिया, उधर राणा श्रीकरणको काम आया हुआ सुनकर राणा की स्त्री रतनादे कुछ द्रव्य (जिवना साथ में चल सका) और समधर आदि चारों पुत्रों को लेकर पीहर (खेड़ीपुर) को चली गई और वहीं रहने लगी तथा अपने पुत्रों को अनेक प्रकार की कला और विद्या सिखलाकर निपुण कर दिया । विक्रम संवत् १३२३ के आषाढ़ वदि २ पुष्य नक्षत्र गुरुवार को खरतरगच्छाधिपति जैनाचार्य श्रीजिनेश्वरसूरिजी महाराज बिहार करते हुये वहाँ (खेड़ीपुर में) पधारे । इनके धर्मोपदेश से रानी के चारों पत्रों ने जैन शोत्रोक्त विधि से श्रावकों के बारह ब्रतों को ग्रहण किया, तथा आचार्य महाराज ने उनका महाजन वंश और बोहित्थरा (बोथरा) गोत्र स्थापित किया। जैनधर्म में दीक्षित होने के बाद उक्त चारों कुमारों ने धर्मकार्यों में द्रव्य लगाना शुरु किया। तथा उक्त चारों भाई संघ निकाल कर और प्राचार्य महाराज को साथ लेकर सिद्धिगिरी की यात्रा को गये। इस यात्रा में उन्होंने एक करोड़ द्रव्य लगायो । जव ल.टकर वापिस आये तब सबने मिलकर समधर को संघपति का पद दिया।