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राजपूताने के जैन वीर
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५. तेजपाल :--
समधर के तेजपाल नामक एक पुत्र था, समधर स्वयं विद्वान् था, अतः उसने अपने पुत्र तेजपाल को भी छः वर्ष की अवस्था में हो पढ़ाना शुरू कर दिया और दश वर्ष तक उससे विद्याभ्यास में उत्तम परिश्रम करवाया । तेजपाल की बुद्धि बहुत ही तेज थी, अतः वह विद्या में खूब निपुण होगया तथा पिता के सामने ही गृहस्थाश्रम का सब काम करने लगा |
...... समधर का जब स्वर्गवास हुआ, तत्र तेजपाल की अवस्था लगभग १५ वर्ष की थी। तेजपाल गुजरात के राजा से गुजरात खरीद कर उसका राजा वन गया । वि० सं० १३७७ ज्येष्ठ वदी ११ के दिन, तीन लाख रुपया लगाकर दादा साहिब जैनाचार्य श्री जिनकुशलसूरिजी महाराज का नन्दी (पार्ट) महोत्सव पाटन. नगर में किया तथा उक्त महाराज को लेकर शत्रुंजय का संघ निकाला और वहुतसा धन शुभ मार्ग में लगाया । पीछे सव. संघने मिलकर तेजपाल को माला पहिनाकर संघपति का पद दिया ! इस.. प्रकार अनेक शुभ कार्यों को करता हुआ अपने पुत्र बील्हाजी को घरका भार सौंप कर अनशन करके स्वर्गासीन हुआ । ६. बील्हाजी:
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'के कवा और धरण नामक दो पुत्र हुए, बील्हाजी ने भी अपने पिता के समान अनेक धर्म कृत्य किये ।
७. कड़वा :---
वीरहाजी की मृत्यु के पश्चात् उनके पाटपर उनका बड़ा पुत्र