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राजपूताने के जैन-चौर
२५० इन्होंने करमसिंह के छोटे भाई वरसिंह को अपना मंत्री नियत किया । वरसिंहके मेघराज, नगराज, अमरसी, भोजराज, डूंगरसी
और हरराज नामक छः पुत्र हुये । इनके द्वितीय पुत्र नगराजके संग्रामसिंह नामक पुत्र हुआ और संभामसिंह के कर्मचन्द नामक पुत्र हुआ। १२. नगराज:
वरसिंह के स्वर्गवास होने पर राव जैतसीजी ने अपना मंत्री नगराज नियत किया। मंत्री नगराज को चांपानेर के बादशाह मुजफकर की सेवा में किसी कारण से रहना पड़ा और उन्होंने बादशाह को अपनी चतुराई से खुश करके अपने मालिक की पूरी सेवा बजाई तथा वादशाहको आज्ञा लेकर उन्होंने श्री शत्रुजय की यात्रा की और वहाँ भण्डार की गड़बड़ को देखकर श्री शत्रुजय की कुंजी अपने हाथ में लली । सं १५८२ में जव क दुर्भिक्ष पड़ा उस समय इन्होंने सदावर्त दिया, जिस में तीनलाख पिरोजों का व्यय किया। ......कुछ काल के पश्चात् इन्होंने अपने नाम से नगासर नामक ग्राम वसाया। . १३. संग्रामसिंहः___ राव कल्याणमलजी महाराज ने मंत्री नगराज के पत्र संग्रामसिंह को अपना राज्यमंत्री नियत किया। संग्रामसिंह ने शत्रुजय आदि तीर्थों की यात्रा के लिये संघ निकाला तथा पूर्व परम्परानुसार धर्मदान किया । यात्रा करते हुये चित्तौड़गढ़में आये, वहाँ राणा उदयसिंहने इनका बहुत मान-सम्मान किया विहाँ से रवाना'.
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