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राजपूताने के जैन वीर सिंघवी इन्द्रराज
ऐ. फूट तैने हिन्द की तुर्की तमाम की । लोगों का चैन खोदिया राहत हराम की ॥
-अज्ञात्
भारत के फूट और बेर दो प्रसिद्ध मेवे हैं । इनको यहाँ फलते फूलते देख कर महात्मा टांड साहब ने दुःखी होकर लिखा था:-- "हाय ! किस कुघड़ी में अभागी भारत-सन्तान ने सजाति भाइयों के हृदय रुधिर का बहाना सीखा था, उसी कुदिन से भारत के उजाड़ होने का आरम्भ होने लगा । विश्राम स्थान भारतवर्ष असीम दुःख का कारागार और अनन्त यन्त्रणा में अन्धन र ककूप की भान्ति हो गया है। कुरुक्षेत्र की भयंकर रमशानभूमि आर्य गणों की गृह-फूट + का रुधिर मय नमूना दिखा
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+ भारत की इस "गृह-फूट" पर भारतेन्दु वावू हरिश्चन्द्री क्या खूब भावपूर्ण गीत लिख गये हैं :
जग में घर की फूट वरी ।
घर की फूटहिं सों बिनसाई सुवरन लंकपुरी ॥ टेक ॥ फूटहिं सों सव कौरव नासे भारत-युद्ध भयौ । जाकौ घाटो या भारत में अवलौं नाहि पूजयौ ॥ फूटहिं सों जयचन्द बुलायौ जवनत भारत धाम । जाको फल अक्लौं भोगत सव आरज होइ गुलाम ॥ जो जग में धन, मान और दल आपुन राखन हो । तौ अपने घर में भूले हूँ फूट करो मत, कोय ॥