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चौहान वंशीय जैन वीर
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इसने मारवाड़ के कोष की नींव बहुत पक्की डाल दी थी । निम्न लिखित कवित्त से ज्ञात होता है कि उसे मारवाड़ के प्रजा कितना अधिक चाहती थी । ।
"बक फटत बैरियां, हक़ जशरा होय । सुत बहादर रे सिरे किशना जैसा न कोय ।।"
+ केवल संख्या ५ और ६ के वीरों का संकलन ओसवाल भाग ४ अंक १० से किया गया है' बाकी का परिचय Some Distinguished Jains से कराया गया है ।
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