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. चौहान वंशीय जैन-चीर २३१ फोई सीमा न.रही, जब उन्होंने देखा कि, अपनी ओर के सामन्त मारवाड़ की सजी हुई सेना को लेकर जयपुर-सैन्य में जा मिले हैं, और तो और, अपने फुटुम्बी बीकानेर-नरेश को भी जब शत्रुपक्ष से मिला हुआ देखा, तो वह दुःख से अधीर हो उठे। वह अफले ही उस महा विपत्ति में फंस गये और इस प्रकार अपने ही हितपियों द्वारा विश्वातघात करने पर जोधपुर-नरेश मानसिंह को युद्ध-क्षेत्र से भागना पड़ा । इस से पूर्व कभी मारवाड़ी वीरों ने युद्ध में पीठ नहीं दिखाई थी, तब अपनों ही के विश्वासघात के कारण उन्हें यह दुर्दिन देखना पड़ा । इस घटना का वर्णन करते हुये महात्मा टॉड कैसी भेदभरी बात लिख गये हैं :___"जातिगत पतन जाति के द्वारा ही होता है ।.जातीय गौरव के सूर्य अस्त करने को यदि जाति स्वयं अग्रसर न हो तो, कभी अन्य जाति के द्वारा यह कार्य सिद्ध नहीं हो सकता
बहुत उम्मीद थीं जिनसे, हुये वह महर्षी कातिल । हमारे माल करने को बने खुद पासवाँ फातिल ।। x
-अज्ञात् बारामाँ ने.आग दी.जब आशियाने को मिरे । जिन.पै.तकिया था वही पत्ते हवा देने लगे।
-अज्ञात * इस घर को आग लग गई घर के चिरायसे । दिल के फफोलें जल उठे सीने के दाग से।
--अज्ञात