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२३२ राजपूताने के जैन-चीर जो महाशक्ति जाति की प्राण-प्रतिष्ठा का देती है, जाति की नस-नस में अपना अव्यर्थ तेज भर देती है, उस महाशक्ति. का जिस दिन से जाति ने अपमान किया तथा आलस्य
और विलासिता के वशीभूत होकर जातीय भ्रातृभाव को जड़ में कुठाराघात किया कि वह जाति उसी रोज़ से पतन के दल-दल में फंस जाती है *" ___ राजा मानसिंह सेना के साथ भागकर सव से पहिले जालौर का आनय लेने के लिये वीसलपुर में आ पहुँचे । चैनमल सिंघवी नामक राजकर्मचारी ने मानसिंह को जालौर में आश्रय लेने के लिये उद्यत देखकर कहा-"महाराज! यहाँ से दाहिनी ओर नौ कोस की दूरी पर राजधानी जोधपुर और ४० कोस की दूर पर जालौर का किला स्थित है । जालौर की अपेक्षा जोधपुर में बड़ी सरलता से पहुंचा जा सकता है। आप यदि अपने बाहुवल से राजधानी की रक्षा करने में समर्थ न होंगे, तो अन्यत्र स्थान में रहकर सिंहासन के अधिकार की आशा कहाँ है ? आप जब तक राजधानी में रहकर सिहासन के रक्षा की चेष्टा करते रहेंगे3 तब तक सम्पूर्ण सर्वसाधारण प्रजा अवश्य ही आपके पक्ष का अवलम्वन करेगी।" महाराज मानसिंह इस कर्मचारी के उपदेश को न्यायसंगत जानकर कुछ घण्टों में जोधपुर के किले में आकर अपनी तथा राज्यासन की रक्षा का उपाय करने लगे। ...
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* टाड राजस्थान दू० मा प० २५३-५४।