________________
चौहान वंशीय जैन वीर २२९ रही है । सब बातों को जान बूझकर भी भारत-सन्तान किस लिये आपस में लड़ाभिड़ा करते हैं, इस मर्म को भगवान ही जानें ! भारत-भूमि ने किसी समय भी फूट से निस्तार नहीं पाया। इसके माया मोह में पड़ कर न जाने अब तक कितने भारत-सन्तान अकाल में इस लोक से चले गये हैं। मतवाले होकर अपना ही सत्यानाश कर बैठे हैं, इसकी गिन्ती कोई भी नहीं कर सकता, इसका शोकदायक आदर्श आज तक स्वर्णप्रसू भारतवर्ष में चमक रहा है । ___ यहाँ एक ऐसे ही अनर्यकारी गृह कलह का वर्णन किया जाता है, जिसके कारण व्यर्थ ही सिंघवी इन्द्रराज जैसे देशभक्त नीति-निपुण वीर सेनापति को अपने प्राण गँवाने पड़े। ___ महाराज मानसिंह के ई०स० १८०४ में मारवाड़ के राज्यासन पर बैठते ही गृह कलह का स्रोता. फूट निकला । जो राठौड़ सरदार और सामन्त किसी समय मारवाड़ की आन के लिये मिटने को प्रस्तुत रहते थे, वही वीर वाँकुरे मारवाड़ी राजपत मारवाड़ के गौरव को धूलधूसरित करने लिये कटिवद्ध हो गये। इस गह-कलह ने उनका यहाँ तक पतन किया कि वे मारवाड़ के शासन की बागडोर विजातीय और विदेशीय व्यक्तितक को सपने + अपनों के सर पे वार है गैरों के बूट का । फल पा रहा है मुल्क यह आपस की फूट का ।।
-अज्ञात टाड राजस्थान प्रथम भाग द्वि० खं० अ०४ पृ.११७ ...