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राजपूताने के जैन वीर
करने पर वि० सं० १७२६ माघ वदी १ को फिर वे दोनों कैद कर दिये गये और उन पर रुपयों के लिये सख्तियाँ होती रहीं। फिर कैद की ही हालत में इन दोनों को महाराज ने औरंगाबाद से मारवाड़ को भेज दिया। दोनों वीर प्रकृति के पुरुष होने के कारण इन्होंने महाराज के छोटे आदमियों की सक्तियाँ सहन करने की अपेक्षा वीरता से मरना उचित समझा । वि० सं० १७२७ की भा"द्रपद वदी १३ को इन्होंने अपने पेट में कटार मारकर मार्ग में ही शरीरांत कर दिया । इस प्रकार महापुरुष नैणसी को जीवन लीला का अंत हुआ और महाराज की बहुत कुछ बदनामी हुई ।
नैणसी के पत्र और पौत्र
नैणसी और सुन्दरदास के इस प्रकार वीरता के साथ प्राणीत्सर्ग करने की खबर जब महाराज को हुई, तब उन्होंने नैणसी के पुत्र करनसी और उसके अन्य बालवच्चों को जो क़ैद किये गये थे, छुड़वा दिया। महाराज के अत्याचार को स्मरण कर वे लोग जोधपुर छोड़कर नागौर के स्वामी रामसिंह के पास चले गये । जो जोधपुर के महाराज गजसिंह के पौत्र और वादशाह शाहजहां के दरवार में सलाबतखाँ को मारने वाले प्रसिद्ध वीर राठौर अमरसिंह के पुत्र थे । रायसिंह ने अपने ठिकाने का सारा काम करमसी के सुपुर्द करदिया । इस पर महाराज ने मुहणोंतों को जोधपुर राज्य की सेवा में नियत न करने की शपथ खाई । परन्तु उनकी प्रतिज्ञा का पीछे से पालन न हुआ । क्योंकि पीछे भी महाराज वखतसिंह