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२१६ राजपूताने के जैन-वीर १७ मेहता सवाईरामजी ... : ... . . : . __(न०१६ सुरतरामजी के पुत्र) संवत् १८३१ में इनके पिता का : देहान्त होने पर उनका सारा अधिकार (मुसाहिबी तथा पट्टा) इन को मिला जो कि सं० १८४९ तक बना रहा। ......... १८. मेहता सरदारमलजी___ (नं १७ सवाईरामजी के पत्र) वैसाख सुदी ११ संवत् १८५६ में इनको दीवानगिरी मिली और आषाढ़ सुदीर सं० १८५७ को २०००) की रेखं का गाँव कांकेलाव मिला। .:. .. १६. मेहता ज्ञानमलजी: __(नं१६ सुतगमजी के पुत्र) यह महाराजा मानसिंहजी के दीवान रहे और गांगोली की लड़ाई तथा घेरे में उक्त महाराज की सेवा की। आते । अस्तु जो होना था सो हो चुका। किन्तु ठहर, मैं तेरा जीवन समाप्त कर देना चाहती हूँ । बहू कायरपत्नी नहीं कहलाना चाहती, तो मैं भी कायर पुत्र को जीवित रखना नहीं चाहती।" ...:
क्रोध के आवेश में वीरस्माता कटार निकाल कर मारना ही . चाहती थी, कि यशवन्तसिंह रोकर पैरों पर गिर पड़े। फिर तलवार निकाल कर प्रतिज्ञा की. "माता जब तक मैं जीवित रहूँगा युद्ध में रहूँगा युद्ध से कभी विमुख नहूँगा। जबतक शत्रुओं का नाशनहीं. .. कर लूंगा. कभी सुख से न बैलूंगा।" .. .. .. . .. गोयलीय ,
. . . [ जून सन् २८ ].