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चौहान वंशीय जैन-चीर २२१ अब भी कोई यात्री वहाँ जाता है, तो उसे नाडौल का किला दिखाया जाता है। कहते हैं कि इसे लाखा ने ही बनवाया था । लाखाबड़ा ही सौभाग्यशाली पुरुष था । उसके चौवीस पुत्र-रत्न थे उनमें से एक का नाम दादराव (दूदा) था, वही भण्डारीकुल का जन्मदाता है। कहा जाता है कि राजघराने के भण्डार का प्रवन्ध दादराव के हाथ में था । इसी कारण से इसकी सन्तान भण्डारी नाम से प्रसिद्ध हुई । विक्रम सं० १०४९ अथवा ई० सं० ९९२ में यशोभद्रसारि ने दादराव को जैनधर्म में दीक्षित किया और उसके कुल को ओसवाल जाति में मिलाया था।
भण्डारी लोग राव जोधाजी के समय में अर्थात् ई० स० १४२७ से १४८९ तक मारवाड़ में आकर बसे और उन्होंने राव जोधा की काफी सेवा की। अपने सेनापति नारोजी और समरोजी भण्डारी की आधीनता में ये लोग मारवाड़ की सहायतार्थ मेवाड़ की सेना से मिलवाड़े में लड़े थे और उसपर विजय प्राप्त की थी। जब से ये लोग जोधपुर में आये उसी समय से राज्य-दरबार में इन की बड़ी मान्यता रही और यह राज्य के बड़ेर उच्च पदों पर नियुक्त रहे । संघवियों की भान्ति ये भी असि,मसिअर्थात् तलवार
और कलम के धनी थे तथा जोधा घराने (वर्तमान मारवाड़ राज्यंवंश) के सच्चे भक्त और उपासक थे। ये लोग अब भी राज्य के • सच्चे सेवक समझ जाते हैं। ये लोग न केवल राजनीवज्ञ और योद्धा ही प्रसिद्ध थे, अपितु इमारत बनवाने में और लेखन कला में भी काफी ख्याति पाई थी। . .