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२०८. राजपूताने के जैनवीर . . . . . . . . दूसरे ही रूप में लिखा जाता। कर्नल टॉड के स्वदेश लौट जाने के वाद.अाज से अनुमान ८०, ९० वर्ष पूर्व उसकी सुन्दर अक्षरों में लिखी एक प्रति बीकानेर राज्य की तरफ से महाराणा उदयपुर के यहाँ पहुंची, जो वहाँ के राजकीय 'वारणीविलास' नामक पुस्तक में विद्यमान है । उदयपुर के वृहत इतिहास 'वीरविनोद के लिखे जाने के साथ उक्त पुस्तक का उपयोग कई स्थानों में हुआ. जब मैंने उस का महत्व देखा, तो, अपने लिये उसकी एक प्रति तैयार करने का विचार किया । परन्तु ऐसी बड़ी पुस्तक की नकल करना कई महीनों का काम था; और इतने समय के लिये राज्य की ओर से इसका मिलना सम्भव देखकर मैंने जोधपुर के कविराजा मुरारीवानजी को लिखा.-"नैणसी की त्यात की मुझे बड़ी आवश्यकता है। यदि श्राप कहीं से उसकी प्रति नकाल करवा भेजें तो बड़ी कृपा होगी। इसके उत्तर में उन्होंने लिखा- नैणसी की त्यात की झूल प्रति बीकानेर दरवार के पुस्तकालय में घी, जहाँ से कर्नल पाउलैट (रेजिडेंट जोधपुर) उसे ले आये। और जिस समय वे स्वदेश लौटने लगे, उस समय मैंने वह प्रति उनसे माँगी तो कृपाकर उन्होंने वह मुझे वादी, जो मेरे यहाँ विद्यमान है। उसकी नाल कराकर मैं आपके पास भेज़ दूंगा। फिर उन्होंने अपने ही व्यय से उसकी नकल कराना शुरू किया और ज्यो २ नकल होती गई, त्यो २ उसका थोड़ा २ अंश वे मेरे पास . भेजते रहे। इस प्रकार: जद सारी पुस्तक सं० १९५९ में मेरे पास पहुँच गई, तब मैंने उसका 'वाणी विलास की प्रति से मिलान