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जोधपुर राजवंश के जैन-बीर २०७० अनेक वीर पुरुषों के स्मारक अपनी पुस्तक में सुरक्षित किये हैं। वि० संवत् १३०० के बाद से नैणसी के समय तक के राजपूतों के इतिहास के लिये तो मुसलसानों की लिखी हुई फारसी तवारीखों से भी नैणसी की ख्यात कहीं-विशेष महत्व की है। राजपूताने के इतिहास में कई जगह जहाँ प्राचीन शोध से प्राप्त सामग्री इतिहास की पूति नहीं कर सकती, वहाँ नैणसी की ख्यात ही कुछ सहारा देती है। यह इतिहास एक अपूर्व संग्रह है। स्वर्गीय मुंशी देवीप्रसादजी तो नैणसी को 'राजपूताने का अब्बुलकपाल' कहा करते थे, जो अयुक्त नहीं है । ख्यात की भाषा लगभग २७५ वर्ष पूर्व की मारवाड़ी है, जिस का इस समय ठीक २ सममाना भी सुलभ नहीं है। नैणसी ने जगह २ राजाओं के इतिहास के साथ कितने ही लोगों के वर्णन के गीत, दोहे, छप्पय,
आदि भी उधत किये हैं, जो डिंगल भाषा में है। उनमें से कुछ ३८० वर्ष से भी अधिक पुराने हैं। उनका समझना तो कहीं २ और भी कठिन है।
नैणसी के पौत्र प्रतापसिंह के मारेजाने पर उसके दो भाई सावंतसिंह और संग्रामसिंह अपनी दोनों माताओं सहित किशनगढ़ और वहाँ से बीकानेर जा रहे। नैणसी की लिखी ख्यात भी वे अपने साथ बीकानेर लेगये और सुना जाता है कि नैणसी के वंशजों ने वह मूल पुस्तक (या उसकी नकल) बीकानेर को भेंट करदी । कर्नल टॉड के समय तक उस पुस्तक की प्रसिद्धि न हुई। यदि उनको वह पुस्तक मिल जाती, तो अवश्य उनका राजस्थान'