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मेहता देवीचन्द
“अगरचन्द के पीछे उसका ज्येष्ठ पुत्र देवीचन्द मंत्री वना और जहाजपुर का किला उसके अधिकार में रखा गया । थोड़े ही दिनों पीछे देवीचन्द के स्थान पर मौजीराम प्रधान बनाया गया और उसके पीछे सतीदास | उन दिनों श्रांबाजी इंगलिया का भाई . 'बालेराव शक्तावतों तथा सतीदास प्रधान से मिलगया और उसने महाराणा के भूतपूर्व मंत्री देवीचन्द को चुंडावतों का तरफदार समझ कर कैद करलिया, परन्तु थोड़े ही दिनों में महाराणा ने उस को छुड़ा लिया | झाला जालिमसिंह ने बालेराव आदि को महाराया की क़ैद से छुड़ाने के लिये मेवाड़ पर चढ़ाई को, जिसके खर्च -में उसने जहाजपुर का परगना अपने अधिकार में कर लिया और मेवाड़ का क़िला भी वह अपने हस्तगत करना चाहता था । महारारणा (भीमसिंह) ने उसके दबाव में आकर मांडलगढ़ का किला उसके नाम लिखा तो दिया, परन्तु तुरन्त ही एक सवार को ढाल तलवार देकर मेहता देवीचन्द के पास मांडलगढ़ भेजदिया । देवीचन्द ने ढाल तलवार अपने पास भेजे जाने से अनुमान कर लिया कि महाराणा ने जालिमसिंह के दबाव में आकर मांडलगढ़ का निला उस (जालिमसिंह) को सौंपने की आज्ञा दी है, परन्तु ढाल और तलवार भेजकर मुझे लड़ाई करने का आदेश दिया है। इस पर उसने क़िले की रक्षा का प्रबन्ध कर लिया और वह लड़ने को - सब्बित हो गया । जिससे जालिमसिंह की अभिलाषा पूरी न हो सकी। कर्नल टॉड ने उदयपुर जाकर राज्य-व्यवस्था ठीक की, उस
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राजपुताने के जैन-वीर
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