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मेवाड़ के वीर सोमचन्द गांधी
राजपूताने के इतिहासमें लिखा है कि "रावत भीमसिंह आदि चड़ावत सरदारों ने महाराणा (भीमसिंह इ० स० १७६८ ता० १० मार्च राज्य प्राप्ति) को अपने कब्जे में कर लिया था। जब कभी महाराणा को रुपयोंकी आवश्यकता होती तब वे खजाने में रुपया न होनेके कारण कोरा जवाब दे देते थे।......एकदिन राजमाता ने चण्डावतों से कहा कि महाराणाके जन्मोत्सव के लिये खर्च का प्रवन्ध करना चाहिये । इस अवसर पर भी वे टाल मदल करगये इन बातों से राजमाता चूण्डावतों से बहुत अप्रसन्न होगई इधर सोमचन्द गांधी ने जो जनानी ड्योढ़ी पर काम करता था; रामप्यारी के द्वारा राजमाता से कहलाया कि यदि मुझे प्रधान बनादें तो मैं रुपयों का प्रबन्ध करटुं। राजमात ने उसे प्रधान वनादिया। वह बहुत योग्य और कार्यकुशल कर्मचारी था। उसने शक्तावतों से मेलजोल बढ़ाया और उनकी सहायता से थोड़े ही दिनों में कुछ रुपये इकट्ठे कर राजमाता के पास भेजदिये । इसपर चुण्डावत सरदार सोमचन्द और उसके सहायकों को सताने तथा हानि पहुंचाने लगे। सोमचन्द ने चूण्डावतोंको नीचा दिखानेके लिऐ भिंडर और लावा के शक्तावत सरदारों को राजमाता से सिरोपाव आदि दिला कर अपनी ओर मिला लिया और कोटे के झाला जालिमसिंह को भी जिसकी चूण्डावतों से शत्रुता थी अपना मित्र तथा सहायक बनालिया। इसके बाद उस (सोमचन्द) ने राजमाता से मिलकर यह स्थिर किया कि महाराणा भीडर जाकर मोहकमसिंह शक्तावत