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जीवणोत छाजूजी की कन्या से किया, जिससे सम्पत्ति सेन ( सपदसेन ) जी उत्पन्न हुये |
सम्पत्तिसेनजी ने भी अपने पिता के तुल्य संवत् १३५१ के कार्तिक सुदी १३ को जैनधर्म का उपदेश लिया, उनके वंश के मोहरणोत ओसवाल कहलाते हैं । जिनका संक्षेपतया विवरण निम्न लिखित है :---
राजपूताने के जैन वीर
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. १.. मेहता - महाराजजी : ---
· यह: मोहरणजी की ९ वीं पीढ़ी में उत्पन्न हुये । राव जोधाजी 'के साथ, संवत् १५१५ में मंडोर से जोधपुर आये, दीवानगी तथा प्रधानगी का कार्य किया । संवत् १५२६ में महाराजा ने प्रसन्न हो कर इनके रहने के लिये फ़तहपोल के समीप एक हवेली - वनवादी । २. मेहता रायचन्द्रजी:
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मोहरणजी की २० वीं पीढ़ी में उत्पन्न हुये । मरुधराधीश राजा शूरसिंहजी के कनिष्ट भ्राता कृष्णसिंहजी को जागीर में सोजत परगने के दूदोड़ आदि १३ गाँवों का पट्टा मिला और संवत् १६५२ में इन्होंने अपने पट्टे के गाँव दोड़ में रिहास अख्तियार करली । फिर संवत् १६५४ में अजमेर के सूबेदार नव्वाव मुराद्रअली के द्वारा वादशाह अकबर की सेवा में पहुँचे । बादशाह ने प्रसन्न होकर संवत् १६५५ में हिंडोन आदि साव परगने प्रदान किये । संवत् १६५८-में महाराज कृष्णसिंहजी ने अपने-- नामएक नूतन नगर बसाकर उसका नाम कृष्णराढ़ रक्खा । जब महा
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