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जोधपुर राजवंश के जैन-बीर १९७ रान कृष्णसिंहजी ने जोधपर से प्रस्थान किया तब मेहता रायचन्द्र जी तथा : उनके कनिष्टभ्राता शंकरमणिजी भी उनके साथ थे। इन दोनों भाइयों के कार्यों से प्रसन्न होकर महाराजा साहब ने मेहता रायचन्द्रजी को अपना मुख्य मंत्री नियत किया और दोनों भाइयों के रहने के लिये दो बड़ी बड़ी हवेलियाँ बनवादी, जो कि बड़ी पौल और छोटी पौल के नाम से अभी तक प्रसिद्ध हैं।
मेहता रायचन्द्रजी ने एक जैन मन्दिर श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ का संवत् १६७० में बनवाना प्रारम्भ किया और संवत् १६७२ में उसकी प्रतिष्ठा कराई । वह मन्दिर कृष्णगढ़ में अब तक विद्यमान है।
कृष्णगदाधीश महाराज मानसिंहजी अपने कुल मांगत'वृद्ध तथा अनुभवी मुख्य मंत्री मेहता रायचन्द्रजी से अत्यन्त प्रसन्न थे। संवत्-१७१६ के एक महोत्सव पर इनकी हवेली में पधार कर महाराज ने भोजन करके इनका गौरव बढ़ाया था और इसके एक वर्ष पश्चात् पालड़ी नामक ग्राम पारितोषक रूप में दिया था। संवत् १७२३ में मेहताजो का स्वर्गवास हुआ। ३. मेहता वृद्धमानजी:
(मोहणजी की २१ वीं पीढ़ी में उत्पन्न). यह महाराज श्रीमानसिंहज़ी के तन दीवान (प्राईवेट सेक्रेटरी) थे। इस कारण हर समय उनके साथ रहते थे। संवत् १७६५ में स्वर्गासीन हुए।
४...मेहता. कृष्णदासजी:. (मोहएजी की २२.वी.पीढ़ी में उत्पन्नः) यह महाराज मानं