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जोधपुर-राजवंश के. जैन वीर
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ही था। इसलिये दीवान बनने के समय नैणसी की अवस्था ४७ वर्ष की थी।
मेहता नैणसी भी जोधपुर राज्य की सेवा में रहा, और वीर प्रकृति का पुरुष होने के कारण, वि० सं० १६८९ में मगरा के मेरों का उपद्रव बढ़ता देखकर महाराज गजसिंह ने मेरों को सजा देने के लिये उसको सेना सहित भेजा । उसने मेरों को सजा दी और उनके गाँव जलाये । वि० सं० १७०० में महेचा महेसुदास बाग़ी होकर राड़धरे के गाँवों में बिगाड़ करता रहा, जिस पर महाराज जसवन्तसिंह ने नैसणी को राड़धरे भेजा । उसने राड़धरे को विजय कर वहाँ के कोट ( शहरपनाह ) और मकानों को गिरवा दिया, तथा महेचा महेसदास को वहाँ से निकाल कर राड़धरा अपनी फ़ौज के मुखिया रावत जगमाल भारमलोत ( भारमल के पुत्र ) को दिया । सं० १७०२ में रावत नराण (नारायण) सोजत की ओर के गाँवों को लूटता था, जिससे महाराज ने मुहणोत नैणसी तथा उसके भाई सुन्दरदास को उस पर भेजा । उन्होंने कूकड़ा, कोट, कराणा, मांकड़ आदि गाँवों को नष्ट कर दिया । वि० सं०१७१४ में महाराज जसवंतसिंह (प्रथम) ने मियाँ फिरासत की जगह नैणसी को अपना दीवान बनाया। महाराज जसवन्तसिंह और औरंगज़ेब के बीच अनबन होने के कारण वि० सं० १७१५ में जैसलमेर के रावल सवलसिंह ने फलोदी और पोकरण जिलों के १० गाँव लूटे, जिससे महाराज ने अहमदाबाद जाते हुए, मार्ग से ही मुहणोत नैणसी को जैसलमेर पर चढ़ाई करने की
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