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राजपूताने के जैन-धीर कार किया, उस समय यह भी उनके साथ थे। अतएव जालोर की हूकूमत प्रथम इन्हीं को मिली। सं० १६८१ में जालोर, शतरुंना, सांचारे, मेड़ता और सिवाना में इन्होंने जैनमन्दिर बनवाये । इसी वर्ष महाराज गजसिंहजी जब जहाँगीर की सहायता के लिये हाजीपर पटना की ओर गयेथे, तब यह उनके साथ फौजमुसाहिब होकर गये थे। सं२१६८६ से:१६९० तक दीवान पद पर अतष्ठित रहे। संवत् १९८७ में एक: वर्ष तक अकाल पीड़ितों का १. वर्ष तक भरण-पोषण किया। सं१ १६८९ में सिरोही के राव 'अरवेराजनी पर एक लक्ष पीरोंजों (एक प्रकार की मुद्रा) की पेशकशी (दण्ड) ठहराई, जिसमें -७५०१०, तो रोकड़ा लिये और २५०००) वाती रक्खे । १०. मेहता नेणसी:. श्रद्धेय ओमानी लिखते हैं :-"जयमल की दो त्रियाँ बड़ी सरूपदे और छोटी सुहाराहे धीं । सरूप से नएसी, 'सुन्दरदास, आसकरण, और नरसिंहदास ये चार पुत्र हुए और सुहागड़े से. जगमाल . · नैणसी का जन्म संवत् १६६७ मार्गशीर्ष सुदी ४ शुक्रवार को हुआ था 1.वि० सं०. १७१४ में जोधपर के महाराज जसवन्त: सिंह (प्रथम) ने नैणसी को अपना दीवान बनाया था। कई वर्षों तक राज्य की सेवा करके विशेष अनुभव प्राप्त किये हुए बद्धिमान परुष का जोधपुर जैसे बड़े राज्य का दीवान बनाया जाना उचित