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मारवाड़ के जैन राजा
मंडोर के प्रतिहार मान्य ओमाजी लिखते हैं:-"मण्डोर (जोधपर से ४मील)
ना के प्रतिहारों के कितने एक शिलालेख मिले हैं जिनमें से तीन में उनके वंश की उत्पत्ति तथा वंशावली दी है। उनमें से एक जोधपुर शहर के कोट (शहर पनाह ) में लगा हुआ मिला, जो मूल में मंडोर के किसी विष्णुमन्दिर में लगा था। यह शिलालेख वि० सं०८९४ (ई० स० ८३७) चैत्र सुदि ५ का है। दूसरे दो शिलालेख घटियाले (जोधपुर से २० मील उत्तर में) से मिले हैं, जिनमें से एक प्राकृत (महाराष्ट्री) भापा का श्लोकवद्ध और दूसरा उसीका आशय रूप संस्कृत में है । ये दोनों शिलालेख वि० सं० ९१८ (ई० स० ८६१ ) चैत्र सुदी २ के हैं। इन तीनों लेखों से पाया जाता है कि "हरिश्चन्द्र" नामक विप्र (ब्राह्मण) जिसको रोहिल्लद्धि भी कहते थे, वेद और शास्त्रों का अर्थ जानने में पारंगत था। उसके दो त्रियाँ थीं, एक द्विज (ब्राह्मण) वंश की और दूसरी त्रिय कुल की बड़ी गुणवती थी । ब्राह्मणी से जो पत्र