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मारवाड़ के जैन राठौड़ राजा
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(पं ३१) "नवसु शेतषु गतेषु तु पण्णवतीसमधिर्केषु माधस्य 1 कुणीकादश्यामिह समर्थितं मम्मटनृपेणं ॥ ""
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भावार्थ :-- वि० सं० ९९६ के माधवदि ११ को मम्मट - राजा ने उक्त दान का समर्थन किया ।
४. धवल:
मम्मट के पुत्र धवलराज ने वि० सं० १०५३ ( ई० स० ९९६) में उक्त मन्दिर का जीर्णोद्धार किया और मन्दिर में श्रीऋषभदेव की नई मूर्ति स्थापित की और महाध्वज चढ़ाया। और मन्दिर की आमदनी में कुछ और वृद्धि कर अन्त में अपने पुत्र बालाप्रसाद को युवराज पदवीं दे, आप विरक्त हो राजकार्य से अलग होगया ।"
उक्त शिलालेख में १० काव्यों में धवलराज के यश और शौर्यादि गुणों का वर्णन किया गया है। १०वें श्लोक में उल्लेख है कि मालवा के परमार राजा मुख ने जिस समय मेदपाट (मेवाड़) राज्य के आघाट स्थान पर आक्रमण किया, उस समय यह उससे लड़ा था और साम्भर के चौहान राजा दुर्लभराज से नाडौल के चौहान राजा महेन्द्र की रक्षा की थी, तथा अनहिलवाड़ा (गुजरात) के सोलंकी राजा मूलराज द्वारा नष्ट होते हुये धरणीवराह को आश्रय दिया था । यह धरणीवराह शायद मारवाड़ का पड़िहार राजा होगा ।