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मेवाड़ के वीर
१५९ फी संयुमा सना का अध्यक्ष बनाया और उसको मरहटों के साथ लढ़ने के लिये भेजा । यह लेना उदयपुर से रवाना होकर निम्बा
दा, नपुम्प: जीरण प्रादि स्थानों पर अधिकार फरती हुई जावद पहुँची। जहाँ मदाशिवराव की मातहती में मरहटों ने पहले तो कुछ दिनों नफ सामना किया परन्तु पीछे से वे कुछ शतों पर. शहर छोड़ कर गले गरे । इस तरह महला मालदास की अध्यउता में मेवाड़ की सेना को मरष्टों पर विजय प्राम हुई।
यह सबर पाकर राजमाता अहिल्याबाई होल्कर) ने पलाजी सिंधिया नया मीनाई की मातहती में ५००० सवार जावद की पोर भने "गहनना गुल फाल नक मन्दसौर में ठहर कर मेवाड़ की भी बढ़ी, नब गदागणाने उसका मुकाबला करने के लिय माना मानदास की अध्यनता में नादी के सुलतानसिंह, दलवाई फ फत्यागासिंह, फानोद के रावत चालिमसिंह, सनवाड़ के वाया मालनसि. प्रादि राजपूत सरदागें तथा सादिक पंजू वगैरह सिंधिगों को अपनी चपनी नेना सहित रवाना किया। वि०सं०१८४४ माघ (ई.स. १७८८ परवर्ग) में मरहटी सना से हइक्याखा के पास राजपूनोंफी लदाई हुई, जिसमें मेवाड़ का मंत्री तथा सेनापति मंहना मालदास, बाया दौलतसिंह का छोटा भाई किशनसिंह प्रादि अनेक राजपत सरदार एवं पंज आदि सिन्धीवीरताके साथ लद कर काम पाय" फर्नल टॉड ने 'एनान्स ऑफ मेवाड़ में मेहता मालदास के लिये लिखा है मालदास मेहता प्रधान थे और उनके डिप्टी मौजीराम थे। ये दोनों बुद्धिमान और वीर थे।'