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मेवाड़ के वीर
शिशोदिया वंश के जैन- वीर अर्थात
मेहता ज्योढीवाला खान्दान
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मेहता सुखानी
मेहवा ड्योढीवालों का वंश चित्तौड़ (मेवाड़) के रावल
करणसिंहजी के सब से छोटे पुत्र सरवणजी से निकला है । रावत करणसिंहजी के तीन पुत्र थे- माहपजी, राहपजी और सरवणजी | माहपजी मेवाड़ छोड़ कर डूंगरपुर चले गये और | वहाँ स्वतन्त्र राज्य स्थापित किया । राहपजी ने 'राणा' पदवी धारण कर मेवाड़ पर राज्य किया और सरवणंजी ने जैनधर्म अंगीकार कर लिया । उनके चार पुत्र हुए। सरवणजी ने फिर चित्तौड़ पर श्री शीतलनाथजी का मन्दिर बनवाया । सरवणजी के जैनधर्म में दीक्षित होजाने से, राहपजी ने इनको जनानी ड्योढी की रक्षा का कार्य सुपर्द किया जो आज दिन तक इन्हीं के वंश में चला आ रहा है । जैनी हो जाने के पश्चात् इनकी सन्तान की शादियाँ ओसवाल जाति में होने लगी और ओसवाल जाति में इनकी या इनके वंश की विशेष मान और प्रतिष्ठा रही ।