________________
१६२ . राजपूताने के जैन-वीर
.. को (जो बीस वर्ष से राज वंश से बिरुद्ध होरहाहै ) अपने साथ उदयपुर ले आवें ...... प्रधान सोमचन्द ओर भीडर के महराज मोहकमसिंह आदि ने यह निश्चय किया कि मरहटों से मेवाड़ राज्य का वह भाग, जिसे उन्होंने दवा लिया है छीन लेना चाहिये। इस कार्य में पूरी सफलता पानेके लिये चुण्डावतों की सहायता आवश्यक समझ उन्होंने रामप्यारी को सलूंबर भेजकर वहां से रावत भीमसिंह को जो शक्तावतोंके जोर पकड़ने के कारण उदयपुर छोड़कर चलागया था बुलवाया था।...इस प्रकार सोमचन्द ने घरेलू झगड़े को दूरकर जयपुर जोधपुर आदि राज्यों के स्वामियों को मरहटों के विरुद्ध ऐसा भड़काया कि वे भी राजपूताने को मरहटों के पंजों से छुड़ाने के कार्य में महाराणा का हाथ बटाने के लिये तैयार होगये।"
वि० सं० १८४४ (ई० स० १७८८) में लालसोट की लड़ाई में मारवाड़ और जयपुर के सम्मिलित सैन्य से मरहटों की पराजय होने के कारण राजपूताने में उनका प्रभाव कुछ कम हो गया था। इस अवसर को अच्छा देख कर सोमचन्द आदि ने शीघ्र ही मरहटों पर चढ़ाई करने का निश्चय किया" पृ०९८४-८७। :
"चूण्डावतों ने प्रकट रूप से तो अपने विरोधियों से प्रेम करलिया था परन्तु, अन्तःकरण से वे उनके शत्रु बने रहे और सोमचन्द गांधी को मारने का अवसर ढूंडरहे थे। अपनी अचल, राजनिष्ठा एवं लोकप्रियताके कारण वह (सोमचन्द)चूण्डावतोंकी.