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१६६ - राजपूताने का जैन-चीर
रावल तेजसिंह के पुत्र वीरवर समरसिंह ने अपने राज्य में जैनाचार्य के उपदेश से प्रभावित होकर जीवहिंसा रोक दी थी। ___ उक्त ऐतिहासिक प्रमाणों से ध्वनित होता है कि यह शायद जैनधर्मी रहे हों।
राजपूतानांतरगत रियासतोंके मंत्री, सेनापति प्रायःजैनी होते. आये हैं किन्तु आज उन सब का परिचय तो क्या नाम तक भी उपलब्ध नहीं होते । यहाँ संक्षेप में मेवाड़ के राणाओं के समकालीन जैन मंत्रियों आदि के नाम दिये जाते हैं:- . १ महाराणा लाखा के समय में नव लाखा गोत्र के रामदेव का
मंत्री होना पाया जाता है। (देवकुल पाटक प्रशस्ति) २ महाराणा हमीर के समय में जालसिंह हुये हैं। परिचय के
लिये देखो प्रस्तुत पुस्तक पृ० १४८। ३ महाराणा कुंभा के समय में वेला भण्डारी, गुणराज, जीजा
वघरवाल,(जिसने जैन कीर्तिस्तम्भ वनवाया) रत्नसिंह, (जिस
ने राणपरा का मन्दिर वनवाया) आदि कई प्रधान पुरुप हुये। ४ महाराणा साँगा के मित्र कर्माशाह के पिता तोलाशाह थे।
राणा की अभिलाषा इनको मंत्री बनाने की थी। किन्तु अ-. त्यन्त धर्मनिष्ट होने के कारण तोलाशाह ने प्रधानपद स्वीकार
नहीं किया। परिचय पृ०७१। । ५ महाराणा रत्नसिंह के मंत्री कर्माशाह थे, जिन्होंने करोड़ों
रुपये लगाकर शत्रुजंय का उद्धार कराया और आदिनाथ की मूर्ति स्थापित की । परिचय पृ०६८। । :