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राजपूताने के जैन वीर
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ऐसा श्रीमाल महात्म्य में है । यहाँ जाकब वालाब के तट पर उत्तर में गजनीखां की क़न है । इस की पुरानी इमारत के ध्वंशों में एक पड़े हुये स्तम्भ पर एक लेख अंकित है, जिस में लेख है कि वि० सं० १३३३ राज्य चाचिगदेव पारापद गच्छ के पूर्णचन्द्र सूरि के समय श्री महावीर की पूजा को आश्विन वदी १४ को १३ दुम्भा व ८. विसोपाक दिये । एक पुरानी मिहराब में एक जैनमूर्ति अंकित है । जाकव तालाब की भीत में एक लेख है, जिस में प्रारम्भ में है कि श्री महावीर स्वामी स्वयं श्रीमाल नगर में पधारे थे । २. माँडोर:
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जोधपुर - नगर से उत्तर ५ मील। यह सन् १३८१ तक परिहार वंशी राजात्रों की राज्यधानी थी । यहाँ बहुत प्राचीन मन्दिरों के शेष हैं। इनमें बहुत प्रसिद्ध एक दो खन की जैन-मन्दिर की इमांरत उत्तर में है। इसमें बहुत कोठरियाँ हैं । मन्दिर में जाते हुये द्वार के चाले में चार जैन तीर्थंकर मूर्तियाँ हैं व आठ भीतर वेदी में कोरी हैं । यहाँ एक बड़ा शिलालेख था जो दबा पड़ा है । इस
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के खम्भे १० वीं शताब्दी के पुराने हैं। ३. नाडोल :
ज़िला देसूरी जवाली स्टेशन से ८ मील यह ऐतिहासिक जगह है। ग्राम के पश्चिम में पुराना किला है। इस क्रिले के भीतर बहुत सुन्दर मन्दिर श्री महावीर स्वामी का है। यह मन्दिर हलके रंग वाले चुनई पाषाण से बना हैं और इस में बहुत सुन्दर कारीगरी है । यह चौहान राजपूतों का स्थान है। जैन-मंन्दिर में