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- मेवाड़ के वीर समय देवीचन्द पुनः प्रधान बनाया गया, परन्तु उसने शीघ्र ही इस्तीफा दे दिया, क्योंकि उस दुहरी हुकूमत से प्रबन्ध में गड़बड़ी होती थी।" मेहता शेरसिंह
अगरचन्द के तीसरे पुत्र सीताराम का वेटा शेरसिंह हुआ। महाराणा जवानसिंह के समय सरकार इंग्रजी खिराज के रु० ७००००० चढ़ गये, जिससे महाराणा ने मेहता रामसिंह के स्थान पर मेहता शेरसिंह को अपना प्रधान बनाया। शेरसिंह इमानदार
और सच्चा तो अवश्य बतलाया जाता था, परन्तु वैसा प्रबन्धकुशल नहीं था, जिससे थोड़े ही दिनों में राज्य पर कर्जा पहले से अधिक हो गया, अतएव महाराणा ने एक ही वर्षे वाद. उसे अलग कर रामसिंह को पीछे प्रधान बनाया । वि० स० १८८८ (ई० स० १८३१) में शेरसिंह को फिर दुवारा प्रधान बनाया। महाराणा सरदारसिंह ने गद्दी पर बैठते ही मेहता शेरसिंह को कैद कर मेहता रामसिंह को प्रधान बनाया । शेरसिंह पर यह दोषारोपण किया गया कि महाराणा जवानसिंह के पीछे वह (शेरसिंह ) महाराणा सरदारसिंह के पुत्र के छोटे भाई शार्दूलसिंह को महाराणा बनाना चाहता था। जैद की हालत में शेरसिंह पर जव सख्ती होने लगी तो पोलिटिकिल एजेण्ट ने महाराण से उसकी सिफारिश की, किन्तु उसके विरोधियों ने महाराणा को फिर बहकाया कि सरकार इंग्रेजी की हिमायत से
राजपूताने का इ० चौ० भा० पृ० १३१५-१६ ।
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