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'राजपूताने के जैन-वीर
चोरों का पीछा करने के लिए घोड़ी पर चढ़ कर खाने हो गये । पीछे से सेमरिया ठाकुर भी वहाँ आ पहुँचे। डाकुओं की संख्या विशेष थी, आपस में खूब लड़ाई रही। अंत में चार डाकू उनके द्वारा मारे गये । और उनके सिरों को बेगू में लटका दिया । इस घटना के कुछ अर्से बाद ३९ वर्ष की अवस्था में ही परलोक • सिधारे। इनके दो पुत्र चत्रसिंहजी और कृष्णलालजी थे। ये दोनों धार्मिक प्रवृत्ति के होने पर भी विशेष साहसी थे।'
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मेहता चत्रसिंहजी :
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'चत्रसिंहजी की गणना मेवाड़ के भक्त पुरुषों में थी । श्रीमान् महाराणा साहब शंभूसिंहजी ने इन्हें योग्य एवं विश्वस्त समझ कर एकलिंगजी के मन्दिर का दरोगा नियुक्त किया । और ३) रोज यानी ९०) माहवार की तनख्वाह तथा चढ़नेके लिए सरकारी घोड़ा दिया | वे वहां पर ३ साल तक काम करते रहे किन्तु देवद्रव्य समझ कर तनख्वाह आदि कुछ भी नहीं ली थी । यद्यपि उनको अपने वड़े कुटुम्ब को पालने के लिए अनेकों आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। इसके बाद महाराणा के हुक्म खर्च के खजाने पर नियुक्त हुए। इन महाराणा के स्वर्गवास होने पर महाराणा शंभूसिंहजी की राणी के कामदार नियुक्त. किये गये । इनकी राज्य में प्रतिष्ठा रही। इनका अधिक समय ईश्वरोपासना में बीतता था । इनकी मृत्यु सं० १९७३ के श्रावण मास में हुई।