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मेवाड़ के वीर वहाँ रहने से अमुक मामे के भानजों के नाम से पुकारे जाँयगे।
जो कुल-गौरव के विपरीत है। ___ उस समय की स्त्रियों में कितना स्वाभिमान एवं कुल-गौरव का भाव था। उन्होंने चर्खा आदि कात कर अपने दोनों बच्चों का पालन किया। यद्यपि श्री जी हजूर दरबार का हुक्म मेहता देवीचन्दजी के नाम इस कुटुम्ब को मदद देनेका हुआ था, किन्तुं उसका ज्यादा असर नहीं होने दिया गया।
बड़े पत्र जोरावरसिंहजी मेवाड़ के प्रसिद्ध दिवान महता रामसिंहजी के दरवार की नाराजगी के कारण वाहर चले जाने के कारण व्यावर चले गये और वहीं उनका देहान्त हुआ। __ छोटे पुत्र जवानसिंहजी बड़े प्रतिभाशाली थे। इन्होंने अपनी बुद्धि और पुरुषार्थ द्वारा, अपनी स्थिति उन्नत कर ली। कहा जाता है कि इन्होंने कभी भी विना १०-२० मनुष्यों को साथ लिए भोजन नहीं किया । कई राजपूत सरदार इनके साथ रहते थे। कई वार श्री जी हजूर में हाजिर हुए । सिरोपाव आदि वख्शे गये । नवलपरा गांव जो उनकी जागीर में अर्से से चला आ रहा था और जो इनकी नावालगी में जप्त करा दिया गया था। इन्होंने अपनी कोशिश से सं० १९०४ में हजूर में अर्ज करा कर इस्तमुरार करा लिया। ___ एक समय की बात है मांडलगढ़ निवासी शंकरजी जोशी की गायं चितोड़ा की वनी में डाकू लोग ले गये । जोशीजी ने यह वात जवानसिंहजी से कही । जवानसिंहजी यह वातं सुनते ही