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मेवाड़ के वीर
ने उनके कथन पर कुछ भी ध्यान न दिया ।
महाराणा सज्जनसिंह के पीछे महाराणा फतहसिंह को मेवाड़ का स्वामी बनाने में उसका पूरा हाथ था । उक्त महाराणा के समय ई० स० १८८७ में ! महाराणी विक्टोरिया की जुबिली के अवसर पर उसको सरकार ने सी. आई.ई. के खिताब से सम्मानित किया ।
वि० सं० १९५१ ( ई० स० १८९४ . ) में उसने यात्रा जाने के लिये ६ मास की छुट्टी ली तब उसके स्थान पर कोठारी बलवन्तसिंह और सहीवाला अर्जुनसिंह नियत हुये । वि० सं० १९७५ के. चैत्र कृष्ण ३० को पन्नालाल ने इस संसार से कूच किया। राजा : प्रजा और सरदारों के साथ उसका व्यवहार प्रशंसनीय रहा और वे सब उससे प्रसन्न रहे । पोलिटिकिल अफसरों ने उसकी योग्यता कार्य कुशलता एवं सहनशीलता आदि की समय-समय पर बहुत कुछ प्रशंसा की है। उसका पत्र फतेलाल महाराणा फतेसिंह के पिछले समय उसका विश्वासपात्र रहा। उस ( फतेलाल ) का पुत्र देवीलाल उक्त महाराणा के समय महकमा देवस्थान का हाकिम भी रहा ।
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इस प्रकार मेहता अगरचन्द और उसके भाई हँसराज के घरानों में उपर्युक्त चार पुरुष प्रधान मंत्री रहे और उनके वंश के अन्य पुरुष भी माँडलगढ़ की क़िलेदारी के अतिरिक्त राज्य के अलग अलग पढ़ों पर अब तक नियुक्त होते रहे हैं + "
+ रा० पू० ३० चौ० भा०पृ० १३२१-२१ |