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मेवाड़ के वीर ने यह खबर पाते ही महाराणा की सेना सहित नीमच की तरफ प्रस्थान किया। महाराणा ने अपने कई सरदारों को भी उक्त कप्तान के साथ करदिया। इतनाही नहीं, किन्तु ऐसे नाजुक समय में कार्यकुशल मंत्री का साथ रहना उचित समझ कर महाराणा ने उस शेरसिंह को प्रधान की हैसियत से उक्त पोलिटिकिल एजेंट के साथ कर दिया और जब तक विद्रोह शान्त न हुआ, तब तक वह उसके साथ रहकर उसे सहायता देता रहा।
नींबाहेड़े के मुसलमान अफसर के बागियों से मिल जाने की खवर सुन कर कप्तान शावर्स ने मेवाड़ी सेना के सा चढ़ाई की, जिसमें मेहता शेरसिंह अपने पुत्र सवाईसिंह सहित शामिल था। जव नींवाहेड़े पर कप्तान शावर्स ने अधिकार कर लिया, तब वह (शेरसिंह ) सरदारों की जमीरत सहित वहाँ के प्रवन्ध के लिये नियत किया गया।
महाराणा ने शेरसिंह को पहले ही अलग तो कर दिया था, अब उससे भारी जुर्माना भी लेना चाहा। इसकी सूचना पाने पर राजपूताने का एजेण्ट जनरल (जॉर्ज लारेन्स) वि० सं० १९१७ मार्गशीर्ष वदि ३ (ई०स० १८६० ता० १ दिसम्बर ).को उदयपर पहुँचा और शेरसिंह के घर जाकर उसने उसको तसल्ली दी। जब महाराणा ने शेरसिंह के विषय में एस (लारेन्स) से चर्चा की, तव उसने उस (महाराणा) की इच्छा के विरुद्ध उत्तर दिया। उसी तरह मेवाड़ के पोलिटिकिल एजेन्ट मेजर टेलर ने भी शेरसिंह से जुर्माना लेने का विरोध किया। इससे महाराणा और पोलिटि