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मेवाड़ के वीर
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कर, चतरसिंह को आज्ञा दी कि वह सालिमसिंह को गिरफ़्तार करे । चतरसिंह ने महाराणा के हुक्म की तामील न कर सालिमसिंह को पनाह दी, इस पर महाराणा ने वि० सं० १९०४ ( ई० सन् १८४७) में शेरसिंह के दूसरे पुत्र जालिमसिंह † को ससैन्य लावे पर अधिकार करने को भेजा, उसने लावे के गढ़ पर हमला किया, किन्तु राज्य के ५०-६० सैनिक मारे जाने पर भी गढ़ की मजबूती के कारण वह टूट नहीं सका। तब महाराणा ने प्रधान शेरसिंह को वहाँ पर भेजा। उसने लावे पर अधिकार कर लिया और चतरसिंह को लाकर महाराणा के सम्मुख प्रस्तुत किया । महाराणा ने शेरसिंह की सेवा से प्रसन्न हो पुरस्कार में क्रीमती खिलात, सीख के वक्त बीड़ा देने और ताजीम की इज्जत प्रदान करना चाहा, परन्तु उस शेरसिंह ने खिलअत और बीड़ा लेना तो स्वीकार किया और ताज़ीम के लिये इन्कार किया !
जब महाराणा सरूपसिंह ने सरूप्रसाही रुपया बनाने का विचार किया, उस समय महाराणा की आज्ञानुसार शेरसिंह ने कर्नल ऐविन्सन से लिखा पढ़ी कर गवर्नमेन्ट की स्वीकृति प्राप्त करली, जिससे सरूपसाही रुपया बनने लगा ।
+ जालिमसिंह मेहता अगरचन्द के दूसरे पुत्र उदयराम के गोद रहा परन्तु उसके भी कोई पुत्र न था, इस लिये उसने मेहता पन्नालाल के तीसरे भाई तस्तसिंह को गोद लिया । तख्तसिंह गिर्वा व कवासनके प्रान्तों पर हाकिम रहा तथा महकमा देवस्थान का प्रबन्ध भी कई वर्षों तक उसके सुपुर्द रहा । महाराणा
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सज्जनसिंह ने उसे इजलास खांस महद्राजं सभा का सदस्य बनाया । वह सरल प्रवृति का कार्य कुशल व्यक्ति था ।