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राजपूतों के जैन चीर
वह आपको डराना चाहता है । अन्त में दस लाख रुपये देने का वायदा कर वह (शेरसिंह) क़ैद से मुक्त हुआ, परन्तु उसके शत्रु उसे मरवा डालने के उद्योग में लगे, जिस से अपने प्राणों का भय जानकर वह मारवाड़ की ओर भाग गया । .
जब महाराणी सरूपसिंह को राज्य की आमद खर्च का ठीक प्रबन्ध करने का विचार हुआ, और प्रीतिभाजनं प्रधान रामसिंह पर विश्वास हुआ, तवं उसने मेहता शेरसिंह को मारवाड़ से बुलाकर वि० सं० १९०१ ( ई० स०१८४४) में उसको फिर अपना प्रधान वनांया | महाराणा अपने सरदारों की छबूंद चाकरी की मामला तै करना चाहता था, इस लिये उसने मेवाड़ के पोलिटिकल एजेन्ट कर्नल ऐबिन्सन से संवत् १९०१ में एक नया कौलनामा तैयार करवाया; जिस पर कई उमंरावों ने दस्तखत किये। महाराणा की आज्ञा से मेहता शेरसिंह ने भी उस पर हस्ताक्षर किये ।
प्रधान का पद मिलते ही उसने महाराणा की इच्छानुसार राज्य कार्य में सुव्यवस्था की और कर्जदारों के भी, महाराणा की मर्जी के मुनाफिक फैसले कराने में उसने बड़ा प्रयत्न किया ।
'लावे (सरदारगढ़) के दुर्ग पर महाराणा भीमसिंह के समय से शक्तावतों ने डोंडियों से क़िला छीन कर उस पर अपनी अधिकार जमा लिया था । महाराणा सरूपसिंह के समय वहाँ के शक्तवित रावत चतरसिंह के कांका सालिमसिंह ने राठौड़ मानसिंह को मार डाला, तो उक्त महाराणा ने उसका कुदेई गाँव जन्त;
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